गुटखा खाने का अंजाम जानकर भी नहीं छोड़ रहे

सीधी।
जिले में गुटखा संस्कृति का आगाज लगभग दो दशक पहले हुआ था। उस दौरान उत्पादक कम्पनियों में व्यवसायिक होड़ काफी कम थी। लिहाजा मानक स्तर की वस्तुएं मिल जाया करती थीं। वर्तमान समय पर बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने सारे समीकरणों को बिगाड़ कर रख दिया है। शायद यही वजह है कि पाउच में बिकने वाले गुटखा पर सरकार ने प्रतिबंध लगाया था। इतना ही नहीं इस मामले में उच न्यायालय भी सख्त था। वजह से प्लास्टिक पाउच की जगह कागज ने ले ली। साथ ही तम्बाकू को अलग से दिए जाने की व्यवस्था बनाई गई। साथ ही इस बात का भी उल्लेख होने लगा है कि तम्बाखू चबाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। बावजूद इसके गुटखा की बिक्री में कमी नहीं आई है और इसके शौकीन घट रहे हैं। मप्र सरकार द्वारा तंबाखू युक्त गुटखों पर प्रतिबंध लगाया गया है। बावजूद इसके नगर समेत ग्रामीण इलाकों में धड़ल्ले के साथ बढ़े हुए दाम पर गुटखा उपलब्ध हो रहा है। बाजार में आसानी से इसके पाउच मिल रहे हैं। प्रतिबंध लगने के बाद यहां के व्यवसायी यूपी एवं छत्तीसगढ़ से गुटखा पाउच ला रहे हैं। प्रतिबंध के बीच गुटखा की अमल लगने पर बेचैन लोग कई किलोमीटर दूर से पहुंचकर स्थानीय व्यवसायिों से गुटखा खरीदने पहुंचा करते थे। कम उम्र में ही तम्बाखू, सुपाड़ी व गुटखे की लत लगना परिवार एवं समाज के लिए गंभीर विषय है। इतना ही नहीं इस तरह की गंदी आदत बीमारी का कारण बन सकती है। चिकित्सकों की मानें तो गुटखा, सुपाड़ी आदि के सेवन से खासतौर पर बच्चों के लिए तो यह सबम्योकर फाइब्रोसिस बीमारी का सबसे बड़ी वजह है। इसके दुष्परिणामों से अंजान लोगों को इस बात की जानकारी तक नहीं है कि छोटी सी उम्र में ही नशे की लत जानलेव कैंसर को न्यौता देना भी है। तेजी से फैल रही सबम्योकस फाइब्रोसिस बीमारी को कैंसर की प्रथम सीढ़ी मानते हैं जो एक निश्चित समय के बाद जानलेवा हो जाती है। कम उम्र के नाबालि बच्चे तक गुटखे का सेवन करते हैं। यही कारण है कि इस क्षेत्र में ओरल कैंसर के मामले अधिक हैं।

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