साइबर दुनिया के नए खतरे को कैसे दें मात?

डिजिटल और साइबर जगत में नित नए प्रयोग और अविष्कार हो रहे हैं, नई-नई तकनीकियां हमारे सामने आ रही है, जो हमारे कार्य और जीवन को पहले से और अधिक सुविधाजनक बना रही है। शायद यही वजह है कि हम इन्हें अपनाने में  जल्दबाजी और अपरिपक्वता दिखाते है। जिसके कारण यह तकनीकियां कई बार हमारे लिए बेहद जटिल समस्याएं भी खड़ी कर देती हैं। इसी कंप्यूटर और आभासी दुनिया के क्षेत्र में एक नया नाम है आई अर्थात आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीकी या फिर कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रौद्योगिकी। इस टेक्नोलॉजी के विकसित होने के बाद दुनियाभर के लोगों के लिए बहुत सारी नई सुविधाओं के रास्ते खुले हैं, लेकिन उसके साथ-साथ लोगों की निजता भी खतरे के साए में आ गई है। इसी का एक बेहद ही खतरनाक पहलू डीप फेक के रूप में देखने को मिल रहा है। हाल ही में देश की कुछ मशहूर हस्तियां के डीप फेक का शिकार होने के समाचार, टीवी चैनलों और समाचार पत्रों की सुर्खियां बने, जिससे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के दुरुपयोग का नमूना हमारे सामने आया।
क्या आप सचमुच जो देखते हैं उस पर विश्वास कर सकते हैं? डीप फेक (डीप लर्निंग और फेक का चित्रण) सिंथेटिक मीडिया हैं, जिन्हें एक व्यक्ति की समानता को दूसरे की समानता से बदलने के लिए डिजिटल रूप से हेरफेर किया जाता है।  डीप फेक गहरी जनरेटिव विधियों के माध्यम से चेहरे की बनावट में हेरफेर है। डीपफेक दृश्य, वीडियो और ऑडियो सामग्री में हेरफेर करने के लिए मशीन लर्निंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी शक्तिशाली तकनीकों का उपयोग किया जाता है। जो अधिक आसानी से धोखा दे सकते हैं। डीप फेक बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली मुख्य मशीन लर्निंग विधियां डीप लर्निंग पर आधारित हैं और इसमें जेनरेटर न्यूरल नेटवर्क आर्किटेक्चर शामिल है। अगर साधारण रूप से समझा जाए तो डीप फेक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल कर फेक यानी फर्जी फोटो, ऑडियो या वीडियो बनाए जा सकते हैं। किसी भी तस्वीर, ऑडियो या वीडियो को फर्जी तैयार के लिए, आई की डीप लर्निंग का इस्तेमाल होता है इसलिए इसे डीप फेक कहा जाता है। डीप फेक को अनुभवी लोगों की प्रशिक्षित आंखें ही वास्तविक वीडियो और डीप फेक  कंटेंट के बीच अंतर पहचान सकती है। डीप फेक एक साइबर हमला कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। डीप फेक का चिंतनीय पहलू इसका खतरनाक स्तर तक दुरुप्रयोग किया जाना है। जैसे बाल यौन शोषण सामग्री, प्रसिद्ध हस्तियों के आपत्तिजनक वीडियो, फर्जी समाचार, धमकाने,  ब्लैक मैलिंग और वित्तीय धोखाधड़ी आदि।
डीप फेक के माध्यम से दुष्प्रचार और घृणास्पद भाषण फैलाने में, सामूहिक एजेंडा निर्धारित करने और सूचित निर्णय लेने के माध्यम से राजनीतिक इच्छा व्यक्त करने की क्षमता में हस्तक्षेप करके लोकतांत्रिक प्रणालियों पर कुठाराघात कर, प्रजातांत्रिक तंत्र को हानि पहुंचाना आदि कुछ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की चिंतित करने वाली समस्याएं भी सामने आ रही है। डीप फेक छवियों और वीडियो में विशेष असामान्यताएं हो सकती हैं। मेटाडेटा विश्लेषण: डिजिटल फाइल में मेटाडेटा का उपयोग इसकी उत्पत्ति का पता लगाने और प्रामाणिकता निर्धारित करने के लिए किया जा सकता है। फोरेंसिक विश्लेषण- वीडियो पैटर्न और ऑडियो का फॉरेंसिक विश्लेषण किया जा सकता है। नए वीडियो को नकली या वास्तविक के रूप में वर्गीकृत करने में मददगार साबित हो सकता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जैसे-जैसे नकली एआई- जनरेटेड और फेस- स्वैपिंग वीडियो अधिक विश्वसनीय होते जाएंगे, उनकी वैधता का पूरी तरह और सही ढंग से आकलन करना और भी कठिन हो जाएगा। अत: ऐसे में जांच के लिए एक से अधिक तकनीकों का प्रयोग किया जा सकता है। दृश्य और श्रवण संबंधी कलाकृतियां, आवाज मुंह की गति का मिलान ठीक से न होना। यदि आप इसे धीमा करते हैं तो वीडियो बहुत अप्राकृतिक लगता है। छवि धुंधली, छाया की कमी, कृत्रिम प्रकाश व्यवस्था। चेहरे की समरूपता संबंधी विसंगतियां जैसे अप्राकृतिक आंखें, कान, दांत, बाल और त्वचा में कृत्रिमता। वीडियो में आवाज संश्लेषित लगती है। उत्पन्न आवाज की निम्न गुणवत्ता। व्यक्ति के चेहरे के भाव के बीच असंगतता या भावना की कमी।
सोशल मीडिया पर सनसनीखेज या विवादास्पद वीडियो या ऑडियो पर आंख मिच कर विश्वास न करें। विश्लेषण करना जरूरी है। ऐसी जानकारी पर विश्वास करने या साझा करने से पहले विश्वसनीय स्रोतों से जानकारी की अच्छे से जांच करें। साइबर सुरक्षा उपकरणों का उपयोग करें, जो अवैध गतिविधियों का पता लगाने और उन्हें रोकने में मदद कर सकते हैं। यदि आपकी व्यक्तिगत जानकारी का ऑनलाइन उपयोग किया जाता है, तो निगरानी रखने और अलर्ट प्राप्त करने के लिए डिजिटल आइडेंटिटी प्रोटेक्शन जैसी सेवाओं का उपयोग करें। जब भी आप डीप फेक (वीडियोए फोटो या ऑडियो) का सामना करते हैं या डीप फेक का शिकार होते हैं, तो इसकी रिपोर्ट  इंटरनेट अपराध शिकायत केंद्र  और स्थानीय पुलिस के साइबर सेल जैसे अधिकारियों को करें। याद रखें, आप अपनी डिजिटल पहचान और गोपनीयता की रक्षा करने में जितना अधिक सफल होंगे, उतने ही आप साइबर अपराध से सुरक्षित रहेंगे। डिजिटल और साइबर दुनिया के बारे में संक्षिप्त में हम कह सकते है कि सावधानी हटी, दुर्घटना घटी।

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