सर्वोच्च न्यायालय वक्फ बोर्ड संशोधन कानून की सुनवाई में सतर्क, और दो अंतरिम आदेश जारी किए
सर्वोच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश जस्टिस खन्ना की अध्यक्षता वाली खंड पीठ ने नवीनतम वक्फ बोर्ड कानून के दो बिंदुओं को जस का तस रखने के आदेश जारी किए हैं जिसमें वक्फ बाय यूजर मुस्लिम धर्म की संपत्तियों को डिनोटिफाइड नहीं करने के आदेश दिए हैं जो 1991के वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक के अनुसार रहेंगे।दूसरे यूडब्ल्यूएमआईआईडी यानि वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक 2025 के अनुसार राज्य वक्फ बोर्ड या केंद्रीय वक्फ परिषद में कोई नियुक्ति अगली सुनवाई 05 मई तक नहीं करेगी ।यह आदेश सर्वोच्च न्यायालय की ओर से भारत सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को नोट कराए गए। याचिकाकर्ता मनोज झा, असुद्दीन उवैसी,इमरान मसूद,तथा अन्य याचिकाकर्ता सहित 77 याचिका दायर की गई है।
इस मामले में उपराष्ट्रपति जगदीप धनगढ़ ने कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय संसद के बनाए कानून को रोक नहीं सकती है।
उल्लेखनीय है याचिकाकर्ता ने अनुच्छेद 26 धार्मिक स्वतंत्रता का हवाला देकर न्यायालय से यह मांग की है कि मुसलमानों के धार्मिक रीति रिवाज और वक्फ संपत्तियों को
देख भाल करने के लिए बनी समितियों, बोर्डों, परिषद में गैर मुसलमान की नियुक्ति करना संविधान की अनुच्छेद 26 के खिलाफ है। सर्वोच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल की जिरह सुनने के बाद आदेश जारी किया है हालांकि सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह दलील भी दी कि तब तो सर्वोच्च न्यायालय की जस्टिस खन्ना की खंड पीठ भी सुनवाई नहीं कर सकती। न्यायालय ने तुषार मेहता की इस दलील को नहीं माना और आदेश जारी कर दिया।यह पहला मौका नहीं जब भारत की सर्वोच्च न्यायालय यानी न्यायपालिका और व्यवस्थापिका में किसी मुद्दे को लेकर विवाद हुआ हो।इससे पूर्व 1986 में शाहबानो प्रकरण में भी न्यायपालिका के आदेश को तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व राजीव गांधी ने संसद में बिल ला कर आदेश बदला था।2006 में लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने संसद सदस्यों की बर्खास्त करने के मामले में सर्वोच्च न्यायालय का नोटिस ही लेने से मना कर दिया था बल्कि सख्त टिप्पणी भी की थी कि संसद ही सर्वोच्च है संसद के बनाए कानून पर ही न्यायालय को चलना चाहिए।