माँ की कलम से – अंधत्व की ओर बढते कदम, बदलाव जरूरी हैं……

कोरोना काल सब कुछ बंद, हर कोई प्रभावित, लाचार है, मजबूर है, पर फिर भी जिंदगी लगातार चल रही है। कोरोना काल की इन कठिनतम परिस्थितियों मैं जहाँ हर कुछ प्रभावित हो रहा है वहीं शिक्षा सबसे ज्यादा प्रभावित हुई हैं।
शिक्षा ज्ञान की यह ज्योति जो भविष्य के नवनिर्माण व सफलता की पहली सीढी है। कोरोना काल मे शिक्षा छोटे बच्चों की हो या बडे बच्चों की, पूरी तरह प्रभावित हुई हैं। चाहे वह शारीरिक रूप में हो या मानसिक रूप में जिस की भरपाई शायद ही कभी हो सके। फिर भी हमारे बच्चे इससे कम से कम प्रभावित हों, बच्चे ज्ञान ज्योति से पूरी तरह बंचित न रह जाए, इसके लिये शिक्षा विभाग द्वारा कई तरह के शिक्षा कार्यक्रम चलाने का भरसक प्रयास किया गया। किताबों में चल रहे कोर्स को कम कर दिया गया, ओपन  बुक एग्जाम लिये गये और इसमें सबसे महत्वपूर्ण था ऑनलाइन क्लासेस का विकल्प। ताकि बच्चे व अध्यापकगण एक दूसरे से जुडे रहें व बच्चे अपने ज्ञान को बेहतर बना सके। ज्यादातर हर स्कूल द्वारा अपने स्तर पर इस शिक्षा पद्धति को बेहतर ढंग से लागू करने का, संचालित करने का प्रयास किया गया व किया जा रहा है।  इन सभी प्रयासों के बाबजूद भी इस पद्धति से पढने वाले बच्चे ना तो इसका पूरी तरह से लाभ ले पा रहे है और ना ही ठीक से समझ पा रहे है। धीरे धीरे पढाई के प्रति उनकी उदासीनता बढती जा रही है। कई विद्यार्थियों ने तो कक्षाओं में उपस्थित रहना ही छोड दिया है। बात फिर भी यही तक सीमित नहीं है बल्कि पढाई के बजाय विद्यार्थियों में इसके दुरूपयोग करने की प्रवत्ति भी बढती जा रही है। कई अभिभावको की परेशानी है कि बच्चों की पढाई जारी रखने के लिये बडी मुश्किल से मोबाइल खरीद लिया, किन्तु उसका रिचार्ज एक बडी समस्या है और आज भी है। लेकिन इस समस्याओं के बीच एक विकट समस्या है। जो धीरे-धीरे बढती ही जा रही है। वह है बच्चो की आंखों की तकलीफें। ऑनलाइन क्लास लेने वाले विद्यार्थियों को जहाँ एक ओर मोबाइल स्क्रीन पर या कंप्यूटर स्क्रीन पर लगातार निगाहें जमाये रखना होता है। वहीं दूसरी ओर अध्यापक से सम्बंधित नोट्स को कॉपी करने में लगातार निगाहें लगाने के कारण बच्चों की निगाहें कमजोर होती जा रही है। जिस कारण उन्हें या तो चश्मा लगा है या लगता जा रहा है।
नेत्र रोग विशेषज्ञ के मुताबिक पहले इस तरह के 8-10 मामले आया करते थे पर अब उनकी समस्या बढ कर 18 से 20 हो गई हैं। बल्कि नेत्र रोग विशेषज्ञ के अनुसार बच्चों में नेत्रो व विजन से सम्बंधित कई नई- नई परेशानिया सामने आ रही है। जैसे आँखों मे जलन, पानी आना, लाल होना, सिर दर्द, चिडचिडापन आदि।  आँखो में जलन के कारण बच्चा जब आँखों को बार-बार मलता है, उससे बच्चों को आँखों से सम्बंधित नई बीमारी (केरेटो कोनस) का सामना करना पड रहा है। इस बीमारी से आँखों के कार्निया में टेडापन आ जाता है। इस कारण बच्चों में भेंगापन की शिकायत आ रही है। इस लेख के माध्यम से मेरा आज अभिभावकों से मात्र यही प्रश्न है, इतना सब जानते हुए भी, हम क्यों हम जान बूझकर इसे मजबूरी का नाम देकर इस विकराल समस्या को अनदेखा करने को तैयार हैं। पढाई आवश्यक है पर नंबरो के बोझ तले दबे हम बच्चों के भविष्य से खिलबाड करते जा रहे हैं, कही ऐसा न हो इस खिलबाड की कीमत हमें चुकानी पडे और हमारा बच्चा अंधत्व के अंधकार व बीमारियों के गर्त में चला जाये। आज-कल की पढाई व भविष्य को लेकर बुने गए इसके सपने को वो साकार ही न कर पायें।

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