महिला सशक्तिकरण का जरिया बना महुआ
शहडोल,
शहडोल आदिवासी बाहुल्य जिला है। यहां कुदरत ने अनेक उपहार दिए हैं। जिले में महुआ के पेड़ भी काफी बहुलता में हैं। आप जहां भी जाएंगे वहीं महुआ के पेड़ पा जाएंगे। महुआ के फूल के सीजन के समय आदिवासी समुदाय के लोग पेड़ के पास ही देखे जा सकते हंै। फूल के सीजन को यहां के आदिवासी बड़ी ही उत्सुकता और एक त्यौहार की तरह लेते हैं और जमकर महुआ बटोरने का काम करते हैं। यहां का महुआ लोगों के लिए आमदनी का बढिय़ा जरिया है। महुआ बीनने से लेकर बेचने तक की प्रक्रिया देखने और सुनने में काफी सहज और सरल लगती है लेकिन हकीकत में देखें तो इससे मुनाफे की महक भी है और महिला सशक्तिकरण की नजीर भी। महुआ की रखवाली पुरुष करते हैं। आमदनी होती है उस पर केवल और केवल महिला का ही हक होता है। उसमें पुरुष कोई दखल नहीं देता है। अधिकांश घरों में इसी तरह का महिला सशक्तिकरण का माध्यम एक तरह से महुआ बनता जा रहा है। महुआ को लेकर आदिवासी समाज और ग्रामीणों में पुराने समय से यह परंपरा चली आ रही है कि पुरुष फूल की रखवाली करते हैँ। जबकि इसे सहेजना, सुखाना, सुरक्षित करना और बेचने पर मिले पैसे को भी ज्यादातर महिलाएं ही रखती हैं। एक तरह से कहा जाए तो महुआ की फसल पर पूरी तरह से महिलाओं का एकाधिकार होता है और इसे पैसे को वे अपनी मुश्किल घड़ी में खर्च करती हैं। देखा जाए तो आदिवासी बहुल जिले के ग्रामीण अंचलों में यह महुआ का पेड़ महिला सशक्तिकरण का भी काम कर रहा है। समाज के लोग तरह-तरह के लजीज व्यंजन भी तैयार करते हैं। इसे अलग-अलग तरह से खाया भी जाता है।