भगवान महावीर का जीवन ही सत्य, अहिंसा, करूणा और शान्ति का उत्कृष्ट दर्शन:  स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने मुम्बई में आयोजित भगवान महावीर 2550 वां निर्वाण महोत्सव में सहभाग कर वहां उपस्थित अपार जनसमुदाय को सम्बोधित करते हुये कहा कि जीवन में न शो हो, न ही शोर हो बल्कि शान्ति ही शान्ति हो वही निर्वाण है।  स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भगवान महावीर ने जीवन साधना और आराधना के साथ प्राणी मात्र के कल्याण एवं मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया तथा उन्होंने जनकल्याण हेतु चार तीर्थों साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविका की रचना की। उनका आत्म धर्म प्रत्येक प्राणी के लिए समान था, जिसकी आज पूरे समाज को जरूरत है। स्वामी जी ने कहा कि चाहे श्वेताम्बर हो या दिगाम्बर हो सभी अपनी – अपनी भक्ति करें परन्तु राष्ट्र प्रथम की भावना अत्यंत आवश्यक है। वर्तमान समय में भारत को महाभारत की नहीं बल्कि महान भारत की आवश्यकता है। भगवान महावीर ने ‘जीयो और जीने दो’ का सिद्धांत दिया परन्तु वर्तमान में हमें जीयो और जीने दो के साथ जीवन दो पर भी अमल करना होगा।  स्वामी जी ने कहा कि जनमानस को ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जानी वाली इस दिव्य विभूति ने आत्मकल्याण तथा समाज कल्याण के लिये अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर पूरी मानवता व ब्रह्मण्ड पर परम उपकार किया है। मानवता के कल्याण को दृष्टिगत रखते हुए उन्होंने सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य के रूप में पाँच सूत्र दिए थे, जिनकी सार्वकालिक प्रासंगिकता है। भगवान महावीर ने समाज के हर वर्ग को मुख्य धारा में लेने के लिये अनेक युगांतरकारी कार्य किये ताकि सभी को सम्मान प्राप्त हो। उन्होंने अपनी आवश्यकताओं को सीमित करते हुए संयम पूर्ण जीवन जीने तथा अपनी अतिरिक्त आय को समाज के हित में समर्पित करने का संदेश देते हुये समाज को दिशा प्रदान की। स्वामी जी ने कहा कि वर्तमान समय में हमारी जीवन शैली में अनेक बदलाव हुये है ऐसे में पर्यावरण को हो रही हानि से उसे बचाने में अपरिग्रह का सूत्र अत्यंत आवश्यक है। अहिंसा, सह-अस्तित्व और प्राणिमात्र में समान आत्मतत्व के दर्शन करने की उनकी शिक्षा का अनुपालन विश्व के अस्तित्व के लिए परम आवश्यक है।  आईये भगवान महावीर की शिक्षा को अंगीकार करते हुए विश्व मानवता के कल्याण में स्वयं को समर्पित करे यही उनके लिये हम सभी की ओर से सच्ची श्रद्धाजंलि होगी।

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