ड्रोन के दुर्दिन से मन खिन्न
आलोक पुराणिक-
निम्नलिखित अंश ड्रोन की आत्मकथा से लिया गया है—ड्रोन यानी उडऩे वाला छोटा जहाज टाइप आइटम, पहले हमारी भोत ही वैल्यू होती थी। मतलब लोग हमें उड़ता देखते थे, हमें देखकर खुश होते थे। फिर ड्रोन पाकिस्तान के हाथ में आ गये। पाकिस्तान में यह करामात है कि जिस भी बंदे या आइटम का कनेक्शन पाकिस्तान से हो जाता है, वह आतंकवादी तत्वों से भरपूर हो जाता है। पाकिस्तान में जो खुद को फकीर टाइप कहते हैं, वो भी आतंकी निकलते हैं। ड्रोन पाकिस्तान के हाथों में आतंकी हो गया और बम गोले टाइप आइटम बरसाने लगा। हमारी बेइज्जती बहुत खराब होने लगी। मतलब ड्रोन की जो क्यूटनेस थी, वह आतंकीनेस में तबदील हो गयी है।
पाकिस्तान में ड्रोन आतंकी हो जाता है, सेना तक पूरी की पूरी आतंकी हो जाती है। टाप क्लास इंटरनेशनल प्लेयर इमरान खान तक आतंकियों का समर्थक हो जाता है। पाकिस्तान के साथ आतंक का आफर फ्री मिलता है। अभी चीन इस बात को समझ ना पा रहा है। खैर जब पूरा पाकिस्तान ही पश्चिमी चीन हो जायेगा, तब शायद चीन को समझ आये। पर अभी तो पाकिस्तान की बदनामियां आत्मनिर्भर हैं, वह अपनी बदनामी के लिए चीन पर निर्भर ना है।
खैर, पाकिस्तान के हाथ में ड्रोन आ गया, तो बदनामी तो असल में ड्रोन को झेलनी ही पड़ेगी। वैसे ड्रोन से जैसे काम भारत में कराये जा रहे थे और कराये जा रहे हैं, उनसे भी ड्रोनों की इज्जतअफजाई न हो रही थी। उनकी वजह से ड्रोनों पर आतंकी होने की तोहमत तो न लग रही थी। भारत में ड्रोन यानी हम अब तक कुल ये कर पा रहे थे—एक काम जो हमसे करवाया जा रहा था कि शादियों में ऊपर उड़ाकर हमसे फोटू खिंचवाये जाते थे। शादियों में तरह तरह के फोटू, जैसा कि सब जानते हैं कि ब्रह्मांड के सबसे ज्यादा फालतू फोटो शादियों में खींचे जाते हैं। इतने फालतू फोटो शादियों में खींचे जाते हैं कि जिनकी शादी हुई दिखती है उन फोटुओं में, वो तक न देखते उनको दोबारा। और पान-मसाला गुटके पाउच सप्लाई किये जा रहे हैं ड्रोनों के जरिये। मतलब यह दिन भी देखना पड़ा इस तकनीक को, कि पान-मसाला प्रेमियों को गुटका पाउच सप्लाई करना पड़ा।
वैसे पान-मसाले को लेकर बुरा न मानना चाहिए, यह बात शाहरुख खान से हम सीख सकते हैं, वो भी वही पान-मसाला बेच रहे हैं, जो अजय देवगन बेच रहे थे। बुरा मानेंगे, तो मार्केट से आउट हो जायेंगे। ड्रोनों को अपना आत्मसम्मान थोड़ा कम करना चाहिए और पान-मसाला वगैरह बेचने का बुरा न मानना चाहिए। वैसे बुरा मान भी जायेंगे तो कर क्या लेंगे। ड्रोन हो या कुछ और सारी तकनीकें आखिर तो कारोबारियों के हाथ ही लगती हैं। कारोबारी जब शाहरुख खान से पान-मसाला बिकवा सकते हैं तो फिर ड्रोन की क्या औकात है।
आखिर में टॉप कलाकार हो या टाप तकनीक, सबको पान मसाला बेचने के ही काम आना है। तो ड्रोन भी आखिर में वही कर रहे हैं।